Monday, June 4, 2012

Guftagu

Unedited, impromptu, free-flowing and earnest. 
This poetry of a conversation, this exchange of madness, this freedom of expression deserves a place here. 
Here's to you and to which is ours, my friend.  




ज़िन्दगी की तबाही के नजारों को भी कुछ लोग
देख कर,सुन कर मज़े लेना चाहते हैं,
वाह ग़ालिबक्या ज़माना आ गया है
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आप जिसे तबाही समझते हैं
वो तो गुल - गुलशन हैं
तबाही तो वो सन्नाटा है,
जो हमारे अन्दर सरसराता है

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उस सरसराहट को जब मैं अपने शब्दों मैं लिखू,
 तो कहीं तुम  उसे मजाक  समझ  हंस न दो,
तो कहीं तुम मुझे बेबाक  समझ ना लो,
कहीं तुम मुझे कोई सूफी संत समझ ना लो

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सन्नाटे को मेरी सुन पाए
इसकी हमे उम्मीद नहीं थी,
ना अल्फाज़ पर तुम्हारे ना तुम्हारी आवाज़ पर हँसी छूटेगी मेरी,
इंतज़ार तो आज तक तुम्हारे बेबाक होने का है

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बेबाक  भी आज  हो जाऊं अगर मैं,
जो फासला है वो हम  तय कर ना सकेंगे
ना तुम बोलोगे कुछ ,
ना हम आगे बढ़ सकेंगे .

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अपनी ख़ामोशी को धुनों से मेरी पूरी करने की कोशिश  है,
फसलों को सच्चाई से दूर करने की कोशिश है,
अपनी बेबाकी पर भरोसा कर के देख  ऐ शायर,
शायद वक़्त ही कुछ  यकीन दिला जाये

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मैंने अब खामोश रहना सीख  लिया है
इस  तन्हाई मैं अपना साया भी ढूंढ लिया है
अब कुछ कहा नहीं जायेगा मेरे दोस्त मुझसे
वक़्त क्या सिखाएगाकी अब मैंने थोड़ा थोड़ा मरना भी सीख लिया है

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इस  फीकी दुनिया के आगे एक  दुनिया और भी है,
अगर अपनी सूनी पलकों को खोल उसे देख पाओ.
तन्हाई में तो सिर्फ साये बसते हैं,
अँधेरे से दूरइस सूरज की ओट में तो आओ .
मरते तो कायर हैं पल-पल हर हार पर अपनी ज़िन्दगी में,
अपने नसीब और किस्मत के आगे अपनी नज़र बढ़ाओ
हर अँधेरे तहखाने में एक शमा है उम्मीद की छुपी,
गर तुम उसे पहचान पाओ

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नहीं ढूँढनी अब मुझे वो उम्मीदनहीं पहचान  मुझे अँधेरे और उजाले की अब.
अब ना-उम्मीदगी ही से मैं हूँ .
मेरा वजूदमेरा यकीन जो किसी पे उम्मीद लगाये थाजिसे किसी ने बेरहमी से तोड़ दिया.
वो अब खुद मैं झांकता है और खुद ही से बातें करता है.
खुद ही हँसता हैखुद ही आंसू बहा लेता है .
मैं मैं मैं - बस यही मेरा इन्साफ  है

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तेरा यूँ जो बिखरता वजूद है,
थाम ले उसे कुछ पल और सोच
उतार फ़ेंक निराशा के चश्मे आँखों पर से
और देख खुला आसमां इंतज़ार में है

मत आंक इतनी कम क़ीमत अपनी
तेरी तो हर सांस अनमोल है
अगर किसी को रौशनी की पहचान नहीं
इसमें तेरा कसूर नहीं
बंद कर देखना उसके आईने में अपना अक्स
बदकिस्मती है उसकीऔर नादान वही
मौका दे एक बार फिर खुद को
खुद को इन्साफ देने वाले तुम क़ाज़ी नहीं

गर्त में गिरने से बचाने तैयार हैं हाथ साथ के
दिल से शुबा निकाल फ़ेंक
तोड़ा था तेरा यकीन हम-मज़हब ने
अब काफिर पर भरोसा कर के देख

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मेरी कीमत कितनी है वो खुदा ही जाने
किसी को अब मुझे तौलने का सबब नहीं मिलेगा पर
हारी नहीं हूँ मैंना ही हार मानूंगी
और किसी को जीतने भर का सुकून भी नहीं होगा असर
ना हिम्मत मेरी कम  है ना तबियत मेरी तंग है
बस बेरंग सा जीवन हैबेमक्सद सा मक्सद है
मेरी फ़िक्र  मैं अपनी शायरी और वक़्त बर्बाद क्यूँ करते हो
मैं ना इसकी कायल हूँ और ना ही शायद लायक.

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